Monday, March 2, 2009

मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा ...

पं0 भीमसेन जोशी की आवाज में आपने ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा’ गाने को दूरदर्शन पर बराबर देखा होगा। इस संगीतमय प्रस्तुती में भारत की पहचान ‘अनेकता में एकता’ दिखती है। 80 के दशक में आई इस गाने की जीवंत तस्वीर अगर देखनी हो तो आपका सूरजकुण्ड मेले में स्वागत है।
अरावली की वादियों में लगने वाले इस खूबसूरत ‘अन्तर्राष्ट्रीय क्राफ्ट मेले’ को हरियाणा सरकार आयोजित करती है। इस बार मेला का थीम मध्यप्रदेश है। इसकी झलक मेले के प्रवेशद्वार के समीप ही बनी प्रसिद्ध भीम बेटका की पहाड़ी की कलाकृति से दिखने लगेगी। इसके साथ ही मेले परिसर में ही बने ‘अपना घर’ में भील जाति को नजदीक से जानने का मौका भी आपको मिलेगा। इस मेले में प्रायः हरेक राज्यों से आए हस्तशिल्पी भाग लेते है और अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन जो बात इस मेले को अन्य मेलों से अलग करती है वह है, इसमें दिखने वाले लोकनृत्य। इसके लिए मेले में ‘चैपाल’ बनाया गया है, जहां कलाकार हर दिन अपने नृत्य को प्रस्तुत करते हैं। लेकिन इसके साथ ही अलग-अलग जगहों पर मंडली जमाए कुछ कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते भी दिखते हैं।
‘लाज बचाओ गजानन...’ गाने की घुन पर कठपुतलीयों की लचकती कमर आपको बरबस ही रूकने को मजबूर करेंगे। यह नृत्य अमरसिंह राठौड़ और सलावत खान की आगरे में हुई लड़ाई पर आघारित है। राजस्थान के इस प्रसिद्ध लोकनृत्य को तेजपाल नागोरी अपनी टीम के साथ मेले में लेकर आए हैं। चंद कदम दूर ही मध्यप्रदेश की काठी नृत्य भी आपको दिखेगी। इस नृत्य की विशेषता है कि इसका प्रदर्शन दीपावली के बाद के एकादशी से महाशिवरात्री तक यानि तेरह महीना तेरह दिन तक ही होता है। यह सृष्टी निर्माण की पौराणिक कथाओं से संबंघित है। मध्य प्रदेश कला परिषद् की तरफ से मांगीलाल मालवीय की टुकड़ी इसका यहां प्रदर्शन कर रही हैं। मेले में जिस लोकनृत्य की थाप दूर से ही सुनी जा रही है, वह है वृज रसिया नाच। यह नाच हरियाणा के मुख्य लोककलाओं में एक है। इस नाच में बजते नगाड़े की तेज और दिलकश आवाज आपके कदमों को बरबस ही थिरकने को मजबूर करेंगी। युवाओं की फौज तो मानो यहां से हटने को तैयार ही नहीं होती। इसके अलावा महाराष्ट्र, आँध्रप्रदेश सहित कई राज्यों के कलाकार भी आपको झुमाने को तैयार दिखेंगे। कला का सुरूर इस कदर आप पर चढ़ेगा कि चाहकर भी आप इससे नहीं बच सकते।
निश्चित तौर पर, मेले में कई सुर हैं और इन सुरों से सजी संगीत अनूठी। सूरों की यह महफिल इतनी दिलकश कि आप ‘‘वाह वाह...’’ कहे बिना नहीं रह सकते। तो भारत को समझने चलें सूरजकुण्ड...

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